ग्रहों के भाव


ग्रहों के भाव ६ प्रकार के यथा नाम तथा गुण होते हैं।


1] जो ग्रह पञ्चम स्थान में राहु, केतु, सूर्य, मंगल और शनि में से किसी एक से भी युक्त हो वह लज्जित होता है।

2] प्रत्येक ग्रह अपने उच्च तथा मूल त्रिको में गर्वित होता है।

3] शत्रु राशि पर या शत्रु ग्रह से दृष्ट या युक्त होने पर वह ग्रह क्षुधित हो जाता है।

4] जलचर राशि पर कोई भी ग्रह अपने शत्रु से दृष्ट होने पर शुभ ग्रह से दृष्ट न होने पर तृषित होता है।

5] मित्र के घर में मित्र से दृष्ट युक्त या गुरु से दृष्ट युक्त होने पर मुदित होता है।

6] सूर्य के साथ होने पर ग्रह अस्त और पापग्रहों से दृष्ट होने पर क्षोभित हो जाता है।

1] जो ग्रह अपने लज्जित भाव में होता है उसको दशा में मनुष्य की बुद्धि क्षीण हो जाती है। स्त्री-वियोग तथा पुत्र को रोग, व्यर्थ की यात्रा या देशाटन करना पड़ता है। इष्ट-मित्रों से कलह, अशुभ कार्यों में रुचि बढ़ती है तथा शुभ कार्यों में इच्छा नहीं रहती। दशम स्थानगत लज्जित ग्रह मनुष्य को दरिद्री और पञ्चम स्थान-गत ग्रह पुत्र-हीन बनाता है।

2] गर्वित ग्रह का दशाफल मनुष्य को गर्वित बनाता है। धन और धान्य से पूर्ण करने के लिए मनुष्य को व्यापार, नौकरी, कलापूर्ण कार्यों में सफलता प्रदान करता है। व्यवहार में कुशलता, नवीन गृह की प्राप्ति, वाटिकादि का सुख, राज्य से पारितोषिकादि की प्राप्ति कराकर मनुष्य को पूर्ण रूप से सुखी बनाता है। गर्वित ग्रह यथा स्थान सुख की प्राप्ति प्रदान करते हैं।

3] क्षुधित ग्रह का दशाफल मनुष्य को लोभ-मोह-शोक, अज्ञानादि प्रदान कर दुष्ट कर्म में लगाता है। मानसिक पीड़ा के साथ-साथ स्वजन समुदाय से सन्ताप व्यथा, तथा विरोध दिलाकर प्रत्येक कार्य में अड़चन उत्पन्न करता है। शत्रुओं
द्वारा धन का ह्रास होता है। शरीर में विकलता होने के कारण स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। दशम, द्वितीय स्थान की क्षुधित दशा मनुष्य को विशेष रूप से धनहीन कर सकती है।

4] तृषित ग्रह दशाफल मनुष्य को दुष्ट संगति में लगाकर मानहानि प्रदान करता है। शरीर में रोग, भय, विवाद उत्पन्न कर, ध्येय से च्युत करता है। धन की हानि होती है। इच्छित वस्तु का ह्रास होता है। दशमस्थ तृषित ग्रह का दशाफल विशेषरूप से राज्य-विवाद कराता है।

5] मुदित ग्रह का दशाफल मनुष्य को प्रत्येक प्रकार से प्रसन्न रखता है। स्त्रीपुत्रादि का सुख मिलता है। मकान, वस्त्र, धन, धान्य, भूमि, वुद्धिविकास कर शत्रु विनाश द्वारा मनुष्य को सर्वसाधारण में सम्मान प्रदान करवाता है। राज्यपारितोषिक दशमस्थ होने पर दिलवाता है।

6] क्षोभित ग्रह का दशाफल मनुष्य को सदा क्षोभित ही रखता है। बुद्धि, धन, मान, आयादि का ह्रास करता है। शरीर में रोग, मन में अशान्ति, चोर, अग्नि, सर्प, विषादिका भय प्रदान करता है। दशमस्थ होने पर मनुष्य को राजा का कोप भाजन बनना पड़ता है। मुकदमें में हार होती है । दण्ड मिलता है। चित्त में अशान्ति तथा ग्लानि उत्पन्न होती है।

मुदित और गर्वित ग्रह की दशा अपने स्थान फल की पुष्टि तथा वृद्धि करती है।

लज्जित, क्षुधित, क्षोभित और तृषित दशाओं के फल स्थानान्तर से हानि तथा हास को प्रदान कर मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं।

Post a Comment

0 Comments