इन पांच मे से धूम का बारह भावो का फल बता दिया है, अन्य ग्रहों के फल हम आने वाली पोस्ट मे देखेंगे।
[१] अभीष्ट-कालिक स्पष्ट सूर्य में ४|१३°|२०' राश्यादि जोड़ने से धूम नामक अप्रकाश ग्रह होता है, जो कि सभी कार्यों का नाशकारक होता है।
[२] धूम को द्वादश राशि में शोधन करने से व्यतिपात योग होता है।
[३] व्यतिपात में ६ राशि युक्त करने पर परिवेष होता है।
[४] परिवेष को १२ में घटाने से इन्द्रचाप होता है|
[५] इन्द्रचाप में १६°१४०' अंशादि योग करने पर केतु होता है|
केतु में एक जोड़ने से पूर्वोक्त स्पष्ट सूर्य के समान होता है। ये सभी अप्रकाश ग्रह हैं। ये सभी अशुभ फल प्रदान करने के कारण पापग्रह कहे जाते हैं।
आईये इसे उदाहरण से देखते है –
[१] मानलो स्पष्ट सूर्य ३।२०।४।२५ है, इसमें ४|१३|२०१० राश्यादि जोड़ने से ८|३|२४|२५ धूम हुआ।
[२] इसको १२ राशि में घटाने से ३|२६|३५|३५ व्यतिपात हुआ।
[३] इसमें ६ राशि जोड़ने से ७|२६|३५|३५ परिवेष हुआ।
[४] इसको १२ राशि में घटाने से २।३।२४।२५ इन्द्रचाप हुआ।
[५] इसमें १६°।४०’ का योग करने से २।२०।४।२५ केतु हुआ।
इसमें १ राशि जोड़ने से ३।२०।४।२५ स्पष्टसूर्य के समान हुआ।
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